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Saturday, September 29, 2012

दृष्टि‍कोण :: शि‍व कुमार झा 'टि‍ल्लू'

दृष्‍टि‍कोण

हि‍आक दू गोट रूप
अवलोकन आ वाचन
पहि‍लुक मात्र अपनहि‍ लेल
दोसर समाजकेँ जनेबाक लेल
पहि‍लुक जौं सद्गमनीय
स्‍व-संतोष आ कल्‍याणकारी जीवन
ओहेन व्‍यक्‍ति‍मे
दोसरक कोनो आवश्‍यकता नै
हमर जीवन पोथीक फूजल पन्ना
सभ वाचन दइत
पोथीक आखरक संग-संग
जौं पटल अर्थात् पृष्‍ठ कारी
केना आखर देखाएत?
एहेन फूजल अर्न्‍तमनक
कोनो प्रयोजन नै
मनसा-वाचा कर्मना
तीनू त्रि‍वेणीक धार जकाँ
वि‍लग... छि‍ड़ि‍आएल...
ई बेवस्‍थाक फेर नै
आ ने जाति‍-वंशक प्रभाव
जौं रहि‍तए तँ बैरमखाँक आंगनमे
रहीम फुदकैत केना?
जखन गुरुजीक मुखसँ
पहि‍ल बेर सुनलौं
आश्चर्य लगल छल
डार्विन जौं ई सुनि‍तए
तँ वंश-सि‍द्धान्‍त नै लि‍खतए
कि‍एक अछि‍ दृष्‍टि‍कोणक फेरि‍?
ई मात्र अर्थयुगक वि‍जय
सभ आगू जेबाक लेल
बपहारि‍ काटि‍ रहल
नीक गुण-धर्मसँ
नीक बाटपर नै
कुकरम करब मुदा
सभसँ आगू नाचब
पथ्‍य स्‍वादहीन होइछ
बाबाकेँ ब्रह्मपहरमे
दुग्‍ध पानक अभ्‍यास छलनि‍
हमहूँ प्रयास कएलौं
दूध तँ ि‍नरंतर नै रहि‍ सकल
मुदा! सुरापान धरि‍
अवश्‍य करए लगलौं
अपने टा नै
समाजक जाति‍क भारसँ
दाबल भरि‍आक बीच
कुहरैत संस्‍कारी दि‍लीप
कोनो राज पुत्र नै
रैदासक वंशज दि‍लीप
खूब पढ़ैत छल
हम घुमैत छलौं
आब ओकरो सि‍खा देलि‍ऐ
दुनू पि‍बैत छी
वाह रे मनुक्‍खक मोन
ऐ सँ नीक चाली
नोन देखि‍ते बाट बदलि‍ लइत
हम मनुक्‍ख छी
आर्यावर्त्तक वैदि‍क
सनातन पालक
पुरुष सूक्‍तसँ देल उपाधि‍
ब्रह्मकुलक पूत
हमहीं भँसै छी
कोनो ने मानवताक भीत ससरए
नानक-रैदास ईसा बुद्ध
परशुराम बुद्ध कृष्‍ण राम
सुरगण कुहरि‍ रहल
रहीमक अस्‍ति‍त्‍व वाम
अंतमे कनै छी
देखि‍ अवोध चि‍लका बि‍लखइए
अपन संग दोसरोक कल्‍याण
नै सोचलौं
की भेटल
मनु-वंशकेँ नाश कऽ देलौं
तँए जे देखू वएह सोचू
वएह अर्न्‍तमन सएह वाचन
नीक केलक नीक भेटल
अधलाह परि‍णाम स्‍वत: भोगैए
ईश्वर छैक की नै
वि‍षय गौण बुझू
मुदा! प्रकृति‍ तँ अवश्‍य
जकर डांगमे कोनो ध्‍वनि‍ नै
अधलाह परि‍णाम भोगबे करत
अधरकेँ हि‍आसँ जोड़ि‍
हमर दृष्‍टकोण नीक
चि‍चि‍आउ नै
सोचू.....
अान्‍हर रहू मुदा
सबहक कल्‍याण करू
जौं एतेक शक्‍ति‍ नै
तँ अपने कल्‍याण करू
जहानमे दृष्‍टि‍कोण वि‍हान
अवश्‍य अाएत।

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