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Tuesday, September 4, 2012

प्रो. राजकुमार नीलकंठ- स्रष्टा



प्रो. राजकुमार नीलकंठ, अवकाश प्राप्त  प्रोफेसर, हि‍न्दी‍ वि‍भाग, ि‍नर्मली महावि‍द्यालय, ि‍नर्मली। गाम- बेलही, जि‍ला- सुपौल।

स्रष्टा
अहाँ
जतऽ कतौ जनमलौं
अपनहि‍ शवकेँ
गुरू-चरण तर दबाए
ऊर्जित-उत्तनि‍त यष्टि
अानत मुख, नमि‍त दृष्टि‍‍
ठाढ़ रहलौं एक ि‍नर्मम प्रश्नवाचक।
आ, फेरसँ
शून्यमे पसरि‍ गेल
दि‍गन्तमे सहस्र-दल
नव रङे रंजि‍त
नव नामे संज्ञि‍त,
अहाँक सर्प-यज्ञमे
देशसँ, देशान्तरसँ
ससरि‍-ससरि‍, छि‍हुलि‍-छि‍हुलि‍
आएब अनि‍वार्य भेल
हएब अनि‍वार्य भेल अनर्थकेँ अहाँसँ
उत्तरि‍त अहाँसँ
अन्तत: अहाँसँ अमुक्त ।
ठाढ़ रहलौं अहाँ
तोड़लौं तँ कि‍छु नै‍
टूटि‍ गेल सभ अपनहि‍-आप
अपनहि‍ अनुत्तरक नागफणि‍ वनमे
लोटि‍-अरूछा कऽ,
जोड़लौं तँ कि‍छु नै‍
सभ जुटि‍ गेल अपनहि‍-आप
अपनहि‍ विवर्तसँ
अपनहि‍ नाङरि‍क पाछाँ-पाछाँ धावि‍त।
अहाँक हएब मात्रसँ
नग्नता भेल पूर्ण।
अहींक दृष्टि-आवरणसँ पुन:
छपि‍ गेल सम्पूर्ण।

एक तीक्ष्ण  अटकनपर
चि‍तकाबर केचुआ उतारि‍
ससरि‍ गेल शंकि‍त ओ-
अनि‍र्वचनीय वृद्ध अजगर
स्यात् कोनो अन्य घाटीक खोजमे
शापि‍त करए सुख-मग्न तृति‍या।

(साभार- मि‍थि‍ला मि‍हि‍र, जून, १९६९ईं.)

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