Pages

Tuesday, August 28, 2012

सुखले मे सभ :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


सुखले मे सभ......

सुखले मे सभ पि‍छड़ि‍ रहल छै
मुँह-कान सभ तोड़ि‍ रहल छै।
सूखल जानि‍ पएर जतऽ रोपै छै
काह-कूह सभ ततऽ जमल छै।
सुखले मे सभ.....।
सूखल धरती जतए पड़ल छै
झल-फल नजरि‍ ततए जाइ छै।
सुखले मे सभ......।
अन्‍हर-जाल फरि‍च्‍छ मानि‍ बूझि‍

भोर-भुरुकबा सूर्य बुझै छै।

सुखले मे सभ......।

No comments:

Post a Comment