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Tuesday, April 10, 2012

शिव कुमार झा 'टिल्लू' - प्रेयसीक विलाप



लागै बरखा इन्होर,
मारै बएसक जोर,
मिलनक आशामे बैसलि-
छी आबू ने चकोर ।

बाटे तँ तकिते तकिते,
नयन सूखि गेलै,
प्रेयसीक विलापपर नहि
अहाँक ध्यान एलै ।

ठनका गर्जय मांचल शोर,
तिरपित नृत्य मोरनी मोर ।
मिलनक आशामे बैसलि,-
छी आबू ने चकोर।
बेदर्दी जुनि बनू,
मोन टूटि गेलै।
पावसक शीतलता-
आतप्त भेलै।

लुप्त भगजोगिनी दर्शए भोर,
लटकल मेघ गगन घनघोर,
किएक हृदय तोड़ि रहलहुँॅ ।
हा ! हम्मर मन चित चोर ।

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