Pages

Wednesday, April 11, 2012

फँसरी :: जगदीश मण्‍डल


फँसरी

फँसरी लगा धड़ैन‍ लटकलौं
पि‍ताएल मन सभ कि‍छु केलौं।
फँसरी जखन बैसल गरदनि‍
मन पड़ल दोसर मरदनि‍।
सुख-दुख मरदनि‍ जनमाबए
संगे दुनू कात हटाबए।
आद्र एक रहि‍तो दुनू
एक दोसरकेँ दूर भगाबे।
लगल फँसरी जहाँ तनाएल
दम फुलि‍ देहो कठुआएल।
गरदनि‍ पकड़ि‍ पोखरि‍ जहि‍ना
हँसि‍-हँसि‍ हरदा बजबाएल।
जेना-जेना गीरह कसैत गेल
तहि‍ना जि‍नगी मन पड़ैत गेल।
चक्र चलैत देखि‍-देखि‍ जि‍नगी
तड़तड़ा-तड़तड़ा खसैत गेल।
ऐ सँ नीक तँ फाँसी होइ छै
कि‍छु कऽ धऽ कऽ तइपर चढ़ै छै।
घरक फँसरी अॅतरी दुहै छै
हार रस सूधि‍ स्‍वान पबै छै।
      ))((

No comments:

Post a Comment