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Tuesday, April 10, 2012

विनीत उत्पल- समाजक ई रूप


इहो अछि एहि समाजक चेहरा
दिल्लीक बाटपर बत्ती लाल भेलापर
इंदौरसँ निजामुद्दीन वा पटनासँ दिल्लीक लेल ट्रेन पकड़बा लेल
आ फेर घरक दुआरिपर
दस्तक दैत देखबामे आबैत अछि ओ
नहि तँ पुरूष अछि आ नहि एकटा स्त्री
भरिसक शारीरिक रूपमे
मुदा मन वा अभिनयक स्वरूप
रहैत अछि अलग-अलग से
से हुनकर की नाम देल जाए

माएक कोखिसँ इहो लेलक जनम
भाइ-बहिनक संग पोसाएल-बढ़ल
स्कूलमे पढाइक सीढ़ी चढ़ल
मुदा फारम भरैत काल खसल भारी बिपैत
किएक तँ आपशन छल दू टा स्त्री वा पुरूष
तखन शुरू भेल हुनकर
सामाजिक बहिष्कार
नहि घरक रहल नहि रहल घाटक
परिस्थिति सभकेँ
जीयब सिखा दैत छैक
से देखबामे आबैत अछि
बाटसँ लऽ कऽ ट्रेन धरि।

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