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Sunday, April 8, 2012

बाल कवि‍ता :: जगदीश मण्‍डल


बाल कवि‍ता

पुत्र- बाबू यौ, पनि‍या दूध कि‍अए बेचै छी
एकरे ने पाप कहै छै?
जानि‍-बूझि‍ जे करए ढि‍ठाइ
तेकरे जमदुत पकड़ै छै?

पि‍ता- कहलह बौआ मधुर बात,
सि‍हरि‍-सि‍हरि‍ हृदए सि‍हरि‍ गेल।
अजीव खेल धर्म-पापक
हँसि‍-हँसि‍ जि‍नगी टुटैत गेल।
पुत्र- की अजीब खेल धर्म-पापक
गुरुवर-गि‍रि‍वर बनि‍ कहू।
कर्म, अकर्म, वि‍कर्म, सुकर्म,
बि‍लगा-बि‍लगा बुझा कहू।
पि‍ता- बाल-बोध रहि‍तो अहाँ
जि‍नगीक रहस्‍य-रस तकलह।
जि‍ज्ञासाक उठैत ज्‍वार
समए पाबि‍-पाबि‍ पेबह।
    ))((

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