Pages

Wednesday, April 11, 2012

वि‍चलि‍त मन :: जगदीश मण्‍डल


वि‍चलि‍त मन

पार्टनर, मुँहगर केना नै बनबै?
छओ-पाँच दि‍न राति‍ करै छी
भंग अंग मुखति‍यारि‍ करै छी
घोरि‍-घाड़ि‍ घि‍सि‍आइत चलै छी
कहि‍या धरि‍ एना चलबै
पार्टनर, मुँहगर केना नै बनबै।
कठरा लकड़ी तबला बनै छै
ढोलक-ढोल सेहो बनै छै।
रस-कुरस पकड़ि‍-पकड़ि‍
कारीगर मुँह सेहो बनबै छै।
अहाँ छोड़ि‍ केकरा कहबै
पार्टनर, मुँहगर केना नै बनबै।
कि‍यो मुँहक झालि‍ सदि‍ बजाबे
तँ कि‍यो सूर मुँह भरै छै।
अलापि‍ तान कि‍यो कहै छै
जय-जयकार कि‍यो सेहो करै छै।
तइ बीच केना कऽ चलबै
पार्टनर, मुँहगर केना नै बनबै।
मुँहक तान मान मपै छै
पलड़ा जोड़ लगबैत रहै छै।
मूंग्‍गा, जअ बाट बना-बना
तीन लोक भूभाग तौलै छै।
तइ बीच केना कऽ बचबै,
पार्टनर, आबो कहू कि‍ करबै
पार्टनर, आबो....
दुनि‍याँक रंगमंच सजल छै
राशि‍-राशि‍ दृष्‍टि‍ बनल छै।
मेलाक हाट-बजार बीच
कारी मुँह चून केना सजेबै
कारीख-चून लगेबै,
पार्टनर, कारीख-चून लगेबै।
     ))((

No comments:

Post a Comment