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Tuesday, April 10, 2012

डॉ शंभु कुमार सिंह - लोरी


तू लोरी गा हम सूति जाएब
माए लोरी गा हम सूति जाएब
लय नहि छौक तँ की
स्वर तँ छौक?
छी भूखल, देह अछि काँपि रहल
ठंढ़ासँ
ई माया नगरी अछि,
हमरा बसन नहि अछि
तँ की भेल जऽर तँ अछि?
माए! हे देखही..
ओकरा गाड़ीमे
उजरा कुकुर अछि घूमि रहल
खा दूध-भात
ई पशु जाति
किछु खाइत अछि
आ किछु करैत अछि जियान
तू मानव छेँ
करैत छेँ श्रम
दिन रातिक श्रमक ई फल छौक
तोहर नेना अन्नक लेल बेकल छौक
कलुष-भेद-तम-निअम विषमक
ई धार आब नहि बहतैक
हमर जाति
ई कुठाराघात
काल्हिसँ नहि सहतैक
टूटि जेतैक एक्कर विषदंत
भऽ जेतैक काल्हि एक्कर अंत
अछि अस्त्र नहि
मुदा हाथ तँ अछि?
आ फेर उपर ‘हर’ तँ छथि?
तू लोरी गा हम सूति जाएब
माए लोरी गा हम सूति जाएब।

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