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Wednesday, April 11, 2012

चपरासी भाय :: जगदीश मण्‍डल


चपरासी भाय

पाबि‍ पद चपरासी केर
खुशी हँसी बनि‍ उठल परि‍वार।
धरती छोड़ि‍ अकास छि‍टकए
सुर्ज-चान संग करत वास।
आइ धड़ि‍ खि‍लचल घर
समाजक वि‍लटल परि‍वार
बसैत मनुख मनुखेक संग
चाहे जेहेन हो परि‍वार।
ओसारेक इस्‍टुलपर
भेटलनि‍ काज भाय चपरासी
पद गढ़ि‍ अंग आॅफि‍सक
रूप सजौलनि‍ दरवाजि‍क।
नाचि‍ मन गाबए लगलनि‍
खि‍खि‍या ताल देखबए लगलनि‍
आँखि‍ मारि‍ इशारा करैत
सुर-ताल झुमए लगलनि‍।
रोब कहाँ रूआब कहाँ
गनल दि‍न पदक छी।
लेखा-जोखा सबहक होइ छै
नीचाँ-ऊपर चाहे कुरसी।
नि‍चला कुरसी कखनो कूदि ‍
तोड़ि‍-फाड़ि‍ धरतीपर पटकए
बति‍या उपरका चीड़ि‍-चाड़ि‍
दोख मढ़ि‍-मढ़ि‍ फँसरी लगबए।
     ))((

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