पड़ाइत जटायुक वंशजसँ
भेट भेल छल शांत आ एकांतमे
अपस्याँत भागल जाइत देखि
हम टोकालिअनि
एक क्षण बिलमलाह
आ, ओ हमरा
पड़ाइते–पड़ाइत
कहि गेल
हे महामानव!
अपनेक नित–निर्मित
बिखाह वायुमण्डलसँ
हमर वंश उपटि गेल
कतेको डीह–डाबर
पर
बैंगन–भाँटा
रोपा गेलै
हमर तँ प्राणे बाँचल अछि जे
एहि अन्हरियोमे भागि रहल छी
अपनेक छत्र छायासँ
आ हिआसि रहल छी ओहेन ठाँ
जतऽ अपनेक जातिक आवागमन नञि हो।
ओना तँ हमरो मोन रहऽ
मंगल आ चान
मुदा ओत्तहुँ पहुँचि चुकल अछि
अपनेक यान
नदी फिरिये देने अछि यूरो गागरिन
आ राकेश श्रीमन्
आन कतेको हाँ मुति घिनेने अछि
अपनेक श्वान।
हमर तँ दुखक नञि ओर
मुदा बचाँ सकब तँ बचाउ
अहाँ अपन संतानकेँ
अपन बिखाह चाङुरसँ
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