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Sunday, April 8, 2012

नव-फल :: जगदीश मण्‍डल


नव-फल

अहाँ बागमे हमहूँ बाबू
चुनि‍ एक फल लगौने छी।
सुआद तँ नै पौने छी
आशा नीकक धेने छी।
छी नै हमर बाग ओ बौआ
पछि‍ला पीढ़ीक लगाओल छि‍यनि‍।
एकाएकी ओगरबाहि‍ करैत
बगवाड़ि‍ करैत बाग धेने छि‍यनि‍।
हुनके सबहक लगाओल ओ बाैआ
बेख-बुनि‍यादि‍ सेहो छि‍यनि‍
गम्‍हारि‍ सीसो ओ ताड़-खजुर
खरही, खरहोरि‍ सेहो छि‍यनि‍।
अपन कहाँ कि‍छु कहलि‍ऐ बाबू
युगक धरम कि‍छु ने पड़ल?
पुरुखामे पौरुष दाबि‍
अपन कि‍छु ने मन पड़ल?
तोहर सवाल सुनि‍ हृदैमे
गुदगुदीक संचार होइए।
तीन शक्‍ति‍ चलए जतए
परि‍वर्तन साकार होइए।
धर्म सनातन यएह कहबै छै,
समए संग सटल चलए।
दुलड़ैत-मलड़ैत संग
झुमि‍-झुमि‍ गबैत चलए।
बौआ, तोहूँ तँ अपन कि‍छु
दि‍न-देखार पथार पसारह।
दबले-दाबल कते दबाएल
रंगमंचपर खेल देखाबह।
तेसरा रोपलनि‍ आम रघुनी भाय
घौंदा-छौंदे फड़लनि‍ ऐबेर।
ओकरे एकटा आँठी आनि‍
खाली देखि‍ रोपलौं ऐबेर।
    ))((

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