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Wednesday, April 11, 2012

झपासा :: जगदीश मण्‍डल


झपासा

पहि‍ले-पहि‍ल जि‍नगीमे
गि‍रहकट भाइक बुझलौं झपासा।
एहेन मुँहचुरू बनब
मनमे नै उठल तेहेन आशा।
सभ दि‍न सुधबा-बुधबा रहलौं
छल-प्रपंचक भाँज नै बुझलौं।
बाबू वचनक नि‍मरजना,
नि‍श्चल मने करैत एलौं।
मुँहसँ कहि‍यो गारि‍ नै नि‍कलल
फलो नीके भेटैत रहल।
ओना सुनने छलौं गि‍रहकटक
बाबूक, मेलाक बात मन पड़ल।
गि‍रहकट भाइक चालि‍ सभ बुझैए
हमहीं टा बि‍नु बुझल छलौं।
नै बूझि‍ पेलौं हुनक झपासा
ओंघरा-पोंघरा खाधि‍मे खसलौं।
बेटा मूड़नमे अगुआ कऽ
नौत-हकार ि‍दअए पठाओल।
कि‍रदानी तेहेन ने केलनि‍
अगुआक अगुआइ फल पाओल।
अहूँकेँ कहै छी भाय
झपासासँ सात लग्‍गा हटल रहब।
गि‍रहकट सबहक बातसँ
सदति‍ अपनाकेँ बचबैत रहब।
     ))((

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