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Tuesday, April 10, 2012

राजदेव मण्‍डल- ज्ञानक झंडा



अनन्‍त अभिलाषा
बदलि देलक परिभाषा
आकाश सभ ठाम भरती भऽ गेल
चिड़ै चह-चह
लोग सह-सह
गन्‍ध मह-मह
अन्‍न गह-गह
भरल जान-माल
टूटि गेल जर्जर जाल
ज्ञान आब तोड़ए ताल
भागल तंत्र-मंत्र
सर्वत्र चलि रहल यंत्र
आब नहि चलत
अंधविश्‍वासक हथकंडा
फहरा रहल
विज्ञानक झंडा
चहुँदिश छँटि गेल अन्‍हार
भऽ रहल जए-जएकार
नित नूतन आविष्‍कार
अपरम्‍पार
बना रहल धराकेँ स्‍वर्ग सन
किन्‍तु कतऽ सँ आनत
ओहन जन-मन
तइयो लगौने आस
कऽ रहल प्रयास
नहि जानि झंडा आब कतऽ गड़त
कोन नव दुनियाँक खोज करत।

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