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Tuesday, April 10, 2012

रघुनाथ मुखिया- छाँहक–सुआद



बेरोजगार लोक
आ बिनु फरैफुलाबै बला गाछबिरीछ
दुनुमे की भेद आ की समानता
मरि जाए बरू कटि जाए तँ बेजायै की।
लोकवेदक कहब छनि
जे लोक नञि हरियर नोट कमाबऽ
आ नञि काया पोसबाक लेल सुन्नर फऽर उपजाबऽ
ओकर बेगरते कोन एहि संसारमे?
हे देखु! तकनीकी शिक्षासँ परिपूर्ण
डंकल अंकल आ चार्ल्स वॉवेजक उत्पाद
नान्हिएटा गाछ जड़िसँ छीप धरि लदमलद
आ खाद पानिसँ कोना तोपल अछि
आ हे एकबेर ओम्हरो देखू ओ....
बऽड़, पीपर आ पाखरिक ढ़ुठिआइत गाछबिरीछकेँ
जूरो शीतलमे एक ठोप भेटाइत हेतै की नहिए
तखनो सदति टटाइत ठाढ़ अछि अनका लेल।
आ हेओ बाबू, भैया, साहेब हजूर
ओहि बऽड़, पीपर आ पाखरिक छाँहक सुआद तेँ
जेठक दुपहरियामे
बाट नपैते मोसाफिरे बुझैत हेतै, नञि?

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