टुटैत जिनगी
टुटैत जिनगीक बेथा
घुरि पाछू देखए पड़त।
सैयौ नै हजारो बर्ख नै
जड़ियेसँ देखए पड़त।
पाँच हजार बर्खक पुराण
हँसि-हँसि बाजि रहल अछि।
सुर-असुर, दानव-देवताक
ऐतिहासिक गाथा सुना रहल अछि।
लगभग पौने दू सए बर्ख पहिने
अंग्रेज आबि आसन जमौलक।
जकरा भगिते ऐठामक
जन-गण आजादीक साँस लेलक।
मुदा एतबे नै, कने आगू चलू।
हजार बर्ख की कहैए।
चारू दिस भजारि-भजारि, तेकरा
पुछियौ विवेकसँ िनर्णए कि करैए।
स्वर्णिम इतिहासक स्वर्णकाल
ओझुके भारत छल तहियो।
निचोड़ि-निचोड़ि, तर्क-वितर्क
िनर्णए िनरमाबए पड़त आइयो।
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