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Wednesday, April 11, 2012

गि‍रहकट :: जगदीश मण्‍डल


गि‍रहकट

घाट सि‍मरि‍या नहाए गेलौं
बूझि‍ गेल केना गि‍रहकट।
पाछू बुझलौं गि‍रहकट छलए
आँचरक पाइ लेलक काटि‍।
जहि‍ना कुसि‍यारक गि‍रहपर सँ
काटै छी मीठ रसक पोर।
तहि‍ना गि‍रह बान्‍हि‍ गि‍रहकट सभ
करैत रहैत साँझ-भोर।
जतए जाएब ततए देखब
गि‍रह बान्‍हि‍-बान्‍हि‍ जाल बनल।
बैसल-बैसल गि‍रहकट सभ
अछि‍ सत्ता-शासन चि‍पकल।
जि‍नगीक कोनो कोण नै
गि‍रहकटसँ छुटल अछि‍।
एहेन वि‍कट समैमे
जि‍नगी भार बनल अछि‍।
नव-नव जाल बना-बना
मकड़जाल पसारने- अछि‍।
दि‍नक-दि‍न, राति‍क-राति‍
ओझरा-ओझरा कुहैत अछि‍।
     ))((

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