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Tuesday, April 10, 2012

कालीकान्त झा ’बूच’- पोताक अट्ठहास


पोता - खेत टी खरिहान टी
      आंगन टी दलान टी
      बाबा आब अहींक कानमे,
      टिटही टहकै टी टी टी।।

बाबा - प्याली पी भरि चुक्का पी,
      घट घट पी सूरूक्का पी,
      रौ कुलबोरन गाम घिनौले,
      लाते, जुत्ता, मुक्का पी।।

पोता - लत्ती कू बा झब्बा कू,
     अब्बा कू बा बब्बा कू,
     आगाँ पाछाँ डोरा डोरिमे
     डोलए दू-दू डिब्बा कू।।

बाबा - जऽर छू जमौरा छू,
     नीपल पोतल दौरा छू,
     मुतिते घऽरक सीरा चढ़ले,
     हगिते तुलसी चौड़ा छू ।।

पोता - लोक कहैए बाटोपर सँ,
     टीली लीली फट्ट औ
     भेल अहाँकेँॅ खाटोपर
उतरब दुरू घट्ट औ

आब अहाँसँ डऽर कथी केल
कतबो हुआ हुआ भूकू
हुआ-हुआ की - की हुआ,
मांगय विधकरी नूआ,
मैया-धीया साड़ी चाही
पुरहितकेँ धोती धूआ
काँच बाँॅसक नऽव पालकी आबए चारि कहरिया जू,
काशी ...........।

बाबा - कूथि-कूथि कठगील उगै छी,
      देखे टन दऽ चलि जेबे
      तोरे हम बरखी कऽ देबौ
      हमर श्राद्ध तोँ की करबैं
      सभ अपना नेनाकेँॅ बरजू चेता दैत छी औ बाबू
      जऽर छू ............................................ ।।

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