लज्जति
बिनु लज्जतिक जिनगी ओहने
बिनु परनक प्रतिष्ठा जेहने।
रस पाबि हरियाइत जहिना
नीरस होइत सुखाइत तहिना।
मधुरस रिसै विवेक वृक्ष
सिरजए सदि जे लज्जति।
लज्जति हीन जीवन ओहिना
गैचिया पाताल धड़ैत जहिना।
लज्जति तँ शोभा जिनगीक
सैजते होइत आभूषित।
तीत-मीठ भेद बिनु बूझि
हँसि-हँसि होइत विभूषित।
लज्जतिक लत्ती अमर
सड़ितो-मरितो सिरजए शक्ति।
तर-ऊपर रसा-रसा
लगए करए सदति भक्ति।
जिनगीक पद्धति रंग-बिरंगक
नीक-बेजाए बेड़ाएत केना।
पूबसँ उत्तर धरि
मिलि समाज चलल जेना।
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