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Sunday, April 8, 2012

डभि‍आएल डगर :: जगदीश मण्‍डल


डभि‍आएल डगर

नि‍त नि‍त्‍यानन ि‍ननाएले नि‍कलए
देखए दुनि‍याँक दीन-दशा।
मधुआएल मन कड़ुआएल आँखि‍ये
झलफलाइत देखए दशा-दि‍शा।
कोनो बाट एकपेरि‍या कहबए
खुड़पेरि‍या कहबए दोसर।
जोहैत सदए जेर जइ
बनैत बाट नव तेसर।
भोरहरबा अन्‍हार रहने
नीनपनी देलकनि‍ पछाड़ि‍।
राड़ी-डबहाड़ि‍क बीच पड़ि‍ते
हाथ-पएर देलकनि‍ गछाड़ि‍।
ओझरी सोझरबैमे
नि‍त्‍यानन भेलाह वेदम।
हारि‍ नै थकान थकि‍ते
अबए लगलनि‍ हि‍आ दम-दम।
वि‍ह्वल भऽ आर्त्त राड़ी
बि‍जकि‍ बाजल कानि‍-कलपि‍।
संग मि‍लि‍ सभ दि‍न रहलौं
लेलकनि‍ बाँहि‍ लपैक‍।
फूल फुलाइत जहि‍ना सभतरि‍
तहि‍ना ने फुलाइ छी।
पूरि‍ संग रौद-बसातमे
संगे-संग उड़ि‍याइ छी।
एक चढ़ए देव सि‍र ऊपर
दोसर चढ़ए महा-अकास।
बाॅकी सभ गलि‍-पचि‍
ससरि‍-ससरि‍ पहुँचए पताल।
))(( 

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