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Tuesday, April 10, 2012

सरोज खिलाड़ी - मनक बात मनमे



सामनेमे तँ हम चुपचाप छलहुँ
परोछमे हम बरबराइत रहै छी
हुनका सामने हम हँसऽ नहि सकलहुँ
अएनाक सोझाँ हम किए मुस्‍किआइ छी?

मनक बात हम हुनकासँ कहऽ नइ सकलहुँ
अखन हम किए पछताइ छी
हुनका आगू किछु बाजऽ नहि सकलहुँ
अखन हम किए नोर बहबै छी ?

मने मन कहै छलहुँ अहाँ बिन जीयब कोना
सामनेमे नहि कहऽ सकलहुँ
संकोच आ डरसँ चुपचाप छलहुँ
मोनसँ कहियो हँसऽ नहि सकलहुँ ।

यादमे हुनक कते दिन नोर बहाउ
हुनक इच्छाकेँ हम बुझऽ नहि सकलहुँ
ओ तँ हमरा पौने छली
हुनका हम पाबऽ नहि सकलहुँ ।

अखनो यादमे हुनक डूबल रहै छी
कनियो चैन नहि पाबऽ सकलहुँ
एहन केहन रोग भऽ गेल हमरा
इलाज हम करबऽ नहि सकलहुँ।

गलती तँ हुनकेसँ भेल
ओहो तँ हमरा कहऽ नहि सकली
ताली तँ हम बजाबऽ चाहलहुँ
मुदा दुनू हाथक मिलन कराबऽ नहि सकलहुँ
मनक बात मनेमे

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