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Wednesday, April 11, 2012

सुनू बौआ :: जगदीश मण्‍डल


बाल गीत

सुनू बौआ यौ सुनू नूनू यौ
चेहरा देखि‍ मन झहरैए
तरे-तरे देह सि‍हरैए
तड़पि‍-तड़पि‍ ओ कुहरि‍-कुहरि‍
बेथि‍त भऽ बेथा सुनबैए
बि‍रड़ोमे उड़ि‍-उड़ि‍ अहाँ
दोगे सान्हि‍ये पड़ा रहल छी
मातृभूमि‍क रस पीबि‍ बि‍ना
पुरुखाक पुरुषत्‍व हरा रहल छी।
 मनुखक जि‍नगी आँकि‍-आँकि‍
अपनाकेँ अँकए पड़त।
ने ते गंगा-जमुना जकाँ
बोहि‍आइत जि‍नगी चलत।
ककरो मेटेने की कहि‍यो
गंगा आकि‍ कोसी मरतै
धारक पेट सदए धारा
संग-संग चलि‍ते रहतै।
मनुख-मनुखमे भेद कतए
देखए पड़त ओइ‍ दुर्गकेँ
ढाहि‍ ढुहि‍ ओइ आड़ि‍ धुर
नव जि‍नगीक नव दुनि‍याँ बना कऽ।
    ))((

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