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Tuesday, April 10, 2012

सरस्वती चौधरी ‘रचना’ - सम्बन्धक कोनो सूत्र



सम्बन्धक कोनो सूत्र
नहि राखऽ चाहै छी बान्हल अहाँक संग
रत्तीरत्ती छहोछित्त कऽ
मुक्त होएबाक होइछ इच्छा
एकटा खूजल परिसरमे
विचरणक अप्पन फूट आनन्द होइछ ।
मुदा अहाँक संग हमर सम्बन्धक
नवनव परिभाषा खोजबाक हमर इच्छाक ।
हमरा फेरसँ झटिआ देलक अछि

हम अपने घरक बाट
बिसरल जा रहल छी ।

की अछि अहाँक संग सम्बन्धक सूत्र
जतेक तोड़बाक कएल जाइछ प्रयत्न, प्रयास
ततबए झमटदार भऽ आँखिक आगू
भऽ जाइछ ठाढ़
आ देखलो बाट हेरा जाइछ
आगू रहि जाइछ अहाँक
मात्र अहाँक मूह आ
रागअनुरागसँ तरबतर भेल
सम्बन्धक मजगूत सूत्र
आब तँ लाज लागल अछि
मुक्तिक हमर इच्छो
मात्र लौलक रूपेँ कएल प्रयास अछि ।
हम तँ कहिया नहि
मन्दिरमे भजन करबा लेल
स्वयंकेँ प्रस्तुत कऽ चुकल छी ।

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