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Saturday, April 7, 2012

मरल घाट :: जगदीश मण्‍डल

मरल घाट

बहुरंगी वि‍श्व बजार बीच
रंग-बि‍रंगी घाट बनल छै।
घाटे-घाट घटबाह बैसि‍
बैतरनी पार करैत रहै छै।
बुझल गमल जेकरा छै घाट
हेलि‍-डूमि‍ अपने पार करैए
जेकरा नै छै बुझल-गमल
गुड़गुड़-गुड़गुड़ गुड़कि‍ मरैए।
बुझलो रहते केना सभकेँ
घाटो कि‍ गानल-मानल छै
फूल भालसरि‍ माला जकाँ
गानल गूथल सगर पड़ल छै।
जहि‍ना रंग-बि‍रंग पोखरि‍मे
रंग-बि‍रंगक घाट बनै छै।
संगमरमर सहि‍त चानन लकड़ी
खाढ़ी बनाओल धोबि‍घाट बनै छै।
पुरुष-घाट नारी-घाट संग
शौच-घाट सेहो बनल छै।
गंगघाट संग सहि‍त
मुर्दघाट सेहो बनल छै
झील-सरोबर सेहो सजौने
नाओं अपन धरौने छै।
अपन नाह अपने खेबि‍
अपन घाट अपने टपबै छै।
जहि‍ना झील-सरोवर घाट
तहि‍ना सागरो गर लगौने
ज्‍वार उठा लहरि‍-टहलि‍
धारा धार सदति‍ बनौने।
जहि‍ना सबहक चि‍त्र-वि‍चि‍त्र
तहि‍ना चि‍त्र-कूट सेहो बनल छै।
जोगी-जती-तपी-संयासी
कूट-घाट स्‍नान करै छै।
घाट चि‍त्र वि‍चि‍त्र बनल
पीच्‍छड़-छीछलाह सेहो सजल छै।
छि‍छलि‍-छि‍छलि‍ पि‍छड़ि‍-पि‍छड़ि‍
ओंघरनि‍याँ दऽ दऽ खसै छै।
खसि‍-खसि‍ पाछू कि‍यो ढुलकए
कि‍यो आगू छि‍छलए लगै छै।
जमघट लगल सजल घाट
एक्के-दुइये पार करै छै।
जहि‍ना फोटो फोटोग्राफर बना
नेङराकेँ दौगबए लगै छै
तहि‍ना ने दौगनि‍हारोकेँ
घीचि‍ पएर पाछू खसबै छै।
चि‍त्र-कूट घाट वि‍चि‍त्र छै
कूट चि‍त्र पहाड़ बनल छै।
उतरि‍‍ रूप कागज पहाड़
तहे-तह पोथी बनल छै।
तीन घाट कि‍नछड़ि‍ बनल
जीवि‍त, अधजीवि‍त मृत कहबै छै।
तहि‍ना तीन बनल जि‍नगी
ईर-वीर-तीर घाट कहबै छै।
तीनू घाट नहेनि‍हार जे
पोखरि‍ प्रवेश करै छै
शीतल-शान्‍त, स्‍वच्‍छ जल मध्‍य
प्रति‍दि‍न‍ स्‍नान करै छै।
नै जीवि‍त नै मृत घाट ओ
अधमरू भेल पड़ल छै।
सु-लोक लोक कहि‍-कहि‍ कु-लोक
भैंसी-भैंसी स्‍नान करै छै।
मुदा, शौचघाट अखनो जीबै छै।
दि‍न-प्रति‍दि‍न लीला करै छै
एक घाट रहि‍तो अनेक
अशुद्ध-शुद्ध बनैत रहै छै।
कखनो अशुद्ध शुद्ध बनि‍
शुद्ध-अशुद्ध बनैत रहै छै।
गोरा गर पकड़ि‍ अशुद्ध
ताल-मेल बैसबैत रहै छै।
जहि‍ना तीनू ताल चलै छै
तहि‍ना तीनू मेल धड़ै छै।
ताल मेल बुझब कठि‍न
तीनू रंग बदलैत चलै छै।
जहि‍ना काग-दोष खेल अंडीक
पल्‍ला-जोड़ा रूप धड़ै छै।
तहि‍ना लघु-गुरु खेल पसारि‍
हँसि‍-हँसि‍ व्‍याकरण बजै छै।
घोबि‍घाट जहि‍ना बनल छै
शौचोघाट तहि‍ना कति‍आएल छै
जगह बदलि‍ स्‍नान घाट
भाग दोसर पकड़ने महार छै
सभ महार सभ घाट बनि‍
पोखरि‍येक घाट कहबै छै।
माटि‍-पानि‍ मि‍लि‍तो-जुलि‍तो
फुट-फुट घाट कहबै छै।
जखने नल-कल-टंकी बनल
घाट स्‍नान सहरए लगल
हहरि‍-हहरि‍ हि‍हि‍या-हि‍हि‍या
हारि‍-हारि‍ हरि‍हर बनल
भेँट नै जेकरा नल-कल-टंकी
पोखरि‍क घाट पकड़ने छै।
शुद्ध-अशुद्ध वि‍चार बि‍नु केने
गर पाबि‍ पकड़ने छै।
जहि‍ना आसि‍न मास छोि‍प
खेत धान कि‍सान अनै छै।
क्षीण-मस्‍ति‍का सदृश चास
झाँट-पानि‍ बरदास करै छै।
बि‍नु छप्‍परक घर बीच जहि‍ना
बाल-बच्‍चा संग जीबै छै।
छल-प्रपंच भेद नै बूझि‍
आस भगवान लगबैत रहै छै।
रस भरल रहस्‍यमय भगवान
सदि‍खन‍ नाच करैत रहै छै।
जे जानए तेकरे देखि‍-देखि‍
फूल-अच्‍छत बँटैत रहै छै।
फूल अच्‍छत चि‍न्‍हए जे जानए
सहए सभ राति‍-दि‍न पबै छै।
चि‍न्‍ह बि‍ना औषध भारी
हारि‍-थाकि‍ कहैत रहै छै।
हारि‍यो-जीतक चालि‍ वि‍चि‍त्र
चीत-पट संग उनटै-पुनटै छै
कनी एम्‍हर आ कि‍ ओम्‍हर
हारि‍-जीत‍ कहाँ कहबै छै।
ससरि‍-ससरि‍ ससरए कि‍यो पाछू
दनदनाइत कि‍यो आगू बढ़ै छै।
रेखा वि‍षुवत बनल घड़ी
बाम-दहि‍न कहबए लगै छै।
दुनू भाग बाट बनल दाेहरी
दूरे-दूरे देखैत रहै छै।
सभ कि‍छु मि‍लतो-जुलि‍तो रहने
ऋृतु परि‍वर्त्तन कहबए लगै छै।
ऋृतु परि‍वर्त्तनक रूप वि‍चि‍त्र
चान-सुर्ज गहि‍या धड़ै छै
गहे-गह ससरि‍-ससरि‍
रीति‍-कुरीति‍ बनबए लगै छै।
बनि‍-बनि‍ कुरीति‍-नीति‍
धारण-धर्म कहबए लगै छै।
देश-बेश बना-बना
परि‍वेश पैदा करए लगै छै।
मौसम गति‍ मौनसुनी
जीवन ठौर धड़बए लगै छै।
कम-सम नै, भेल बहुत
रहि‍-रहि‍ इति‍हास कहै छै।
वाणी-बोली रूप बदलि
राति‍-दि‍न ललकार भरै छै।
गामे-गाम धार-पोखरि‍ बनि‍
रंग-बि‍रंगक फूल उगल छै।
धरती पानि‍क मध्‍य बीच
थाल-कीच सेहो बनल छै।
घाटक थाल ससरि‍-ससरि‍
बगल पानि‍ पसरल छै।
चि‍क्कन पानि‍ चमकए जहि‍ना
धरति‍यो तहि‍ना चमकै छै।
ऊपर-नि‍च्‍चाँ खाढ़ी पकड़ि‍
दूनू-दुनू दि‍स देखै छै।
नजरि‍ पकड़ि‍ मि‍ला नजरि‍
पवि‍त्र पवन सि‍रजै छै।
गोपी संग केरि‍ करए कृष्‍ण जना
तहि‍ना जल-धरति‍यो करै छै।
हृदए खोलि‍ तान भरि‍-भरि‍
धुन बासुरी सुनबै छै।
     ))((

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