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Wednesday, April 11, 2012

जुआनी :: जगदीश मण्‍डल


जुआनी

समए संग चढ़ैत जवानी
सुति‍-जागि‍ चलैत अछि‍।
नट-नटीक रंगमंच गढ़ि‍
घर-अंगना नचैत अछि‍।
चैत चि‍त्त चढ़ि‍ते चढ़ैत
योग-वि‍योग बीच मर्ड़ाइत।
लहलहाइत, फन-फन फनैत‍
दन-दन-दनाइत तड़पैत।
कात-करोट देखि‍-देखि‍
सोलहो श्रृंगार सजबैत।
योगी-वि‍योगी बनि‍-बनि‍
राग-तान, सुर मि‍लबैत।
हपैत हवा थर्ड़ाएल ज्‍योति‍ बीच
वेदनक वाणसँ बेथि‍त
तन्नुक तन अधखि‍ल्‍लू मन
टुकड़ी-पुरजा भऽ उड़ैत।
शीतल समीर सि‍हरैत सज्जा
कलपि‍ कलसि‍ कोमल कली
हँसि‍-काि‍न झर-झर झहरि‍
नयन-नीर कोमल डली।
कड़कि‍ जुआनी झड़कि‍-झड़कि‍
हि‍अबए राह जि‍नगी केर
बैंकि‍ंग बालु बना-बना
खि‍ल पकड़ि‍ फेकि‍ साधि‍ केर।
    ))(( 

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