चौठचन्द्रक छाँछी
चलैत चाक देखि कुम्हनि
तिरछिया तीर छोड़लनि तानि।
कोन लोभ लटकल अहाँ छी
जहिना बगुला, पाछू दौगैत जानि।
प्रीतम प्रीत पाबि कुम्हार
बिहुँसि बाजल, छाती खोलि तानि।
सभ दिनसँ करैत रहल छी
तेकरा केना छोड़ब जानि।
भादो सन उकरू मासमे
विधाताक चाक चलबै छी।
पानि-बुन्नीक ठेकान कोनो ने
अनेरे फज्झति सुनबै छी।
जे फज्झति करए अहाँकेँ
तेकरा पुछब अपन किरदानी।
लोहा-लक्कड़क दूध पौर-पौर
गाए-महिंसक करैत बदनामी।
छोड़ि दिअ सभ गर-गिरहत
बेशर्म सभ बनल जाइए।
देवियो-देवताकेँ ठकि-फुसिया
छाती तानि-तानि चलैए।
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