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Tuesday, April 10, 2012

शेफालिका वर्मा- प्रसंग चाहे जे होइ


सम्बन्धक सीमामे सिनेह नहि
स्वार्थ बसैत अछि, मानवक  भेखमे
राम नहि रावण घुमैत अछि ...
स्वार्थपर जोड़ल संबंधक देवारक   
प्लास्टर झरि जाइत छैक  
विश्वासक कांच रंग कालक
रौदमे उड़ि जाइत छैक ....
रंगहीन गंधहीन निर्जीव
रिस्ताक लहासकेँ क्रोंस जकाँ 
अपन कान्हपर उठेनाइ
अनुचितमे अपन उचितकेँ मारनाइ
ई परिभाषा रिश्ता नाताक खूब अछि ...........

नाम केओ लाख राखि  लैक
राम सन राजा
लक्षमण सन भ्राता
सुग्रीव सन दोस्त
नहि तँ भेल अछि आ नहि तँ होएत
हंह ...
सीता मौन मूक भए
अग्निपरीक्षामे जरबाक परम्पराक
जन्म देलन्हि आ तैं सीता आइयो
जरि रहल अछि
प्रसंग चाहे जे होए ..............

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