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Tuesday, April 10, 2012

शि‍शबोनी :: जगदीश मण्‍डल


शि‍शबोनी

बुइध-बि‍चड़ी कऽ पत्नी कहलनि‍
शीशो लगबैक वि‍चारो देलनि‍।
नहि‍यो मन, तैयो सुनलि‍यनि‍
जबाब नै कि‍छु दऽ सकलि‍यनि‍।
मने-मन वि‍चारए लगलौं
मुँह फोड़ि‍ कि‍छुओ ने बजलौं।
दोहरा कऽ ओहो ने पुछलनि‍
आगूक बात कि‍छुओ ने कहलनि‍।
मुदा नजरि‍ नि‍हारै छलनि‍
पचास गाछ, पि‍ताक देल छलनि‍।
भोग-भोगि‍ उपटा देलि‍यनि‍
शीशोक गाछ सठा देलि‍यनि‍।
बाल-बोध चेतन जब बनतै
माए-बापक कि‍रदानी कहतै।
बाबा-बाप, बेटाक हि‍साब
मने-मन सेहो ने जोड़तै।
चलै लए चलनसारि‍ बनल छै
आगू-पाछू सभ चलै छै।
अगि‍लाक पएरक रेगहा-सि‍रखार
पकड़ि‍-पकड़ि‍ पछि‍लो चलै छै।
जँ उपयोगी बौस नै हेतै
छोड़ैमे असोकर्ज नै हेतै
जँ उपयोगी बौस भवि‍ष्‍यक
कर्म-अधर्म ि‍कअए नै हेतै।
बीघा भरि‍क बाग-बगीचा
बेटा सि‍र लटकौने गेला।
रंग-बि‍रंगक फल सजि‍
बेख-बुनि‍यादि‍ पटकने गेला।
चारू आड़ि‍ अड़ि‍या-अड़ि‍या
अड़कस दऽ आड़ा बनौलनि‍।
आम, कटहर, बेल, लीची
बीच रोपि‍, आड़ा शीशो लगौलनि‍।
नमती-चौड़ी हि‍साबसँ
नापि‍-नापि‍ सभ गाछ लगौलनि‍
आधा लग्‍गी नाला खुनि‍-खुनि‍
आधा लग्‍गी आड़ा बनौलनि‍।
आड़ा खुट्टी ठोकि‍-ठोकि‍
जनमाउ बीआ सेहो लगौलनि‍।
काटि‍-छाँटि‍ मुँह-कान बना
गाछ पचास शीशो पुरौलनि‍।
जाधरि‍ जि‍नगी नीक चलल
शीशो-पांङ जारन चलल
जेना-जेना दि‍न खि‍लचल
जारन संग गाछो बि‍लटल।
पत्नीक पवि‍त्र परामर्श पकड़ि‍
मने-मन मनन करए लगलौं
मसलि‍-मसलि‍ मन मथि‍-मथि‍
बाल-बोध ले वि‍चारए लगलौं
घुरि‍या-घुरि‍या, फि‍रि‍या-फि‍रि‍या
घुरछी मन लगए लगल।
की नीक की अधला
नि‍हारि‍-नि‍हारि‍ नि‍हारए लगल।
सु-नीक, कु-नीक बाटे-बाट
रस्‍ते–पेड़ै औनाए लगलौं
बीच बाट अटकि‍ ठाढ़
गुन-धुन करैत वि‍चारए लगलौं।
इंच-इंच भूमि‍ मि‍लि‍-जुलि‍
हीराखान बनल छै
आधा लग्‍गी पेट काटि‍
आधा आड़ा सेहो बनल छै।
आड़ा पहेटि‍-पहेटि‍ पेट भरि‍
समतल-चौरस बना देबै।
धारी-एक बढ़ा-बढ़ा
तीन धाड़ी शीशो लगा देबै।
कलसि‍ मन फलकि‍ उठल
परामर्श पत्नीक पनपि‍ उठल
लहकैत‍ मन चहकए लगल
प्रभाती पक्षीक सुनए लगल।
पट बना बनेलौं पनि‍घट
आड़ा पटक माटि‍ बनेलौं
आड़ा-आड़ी सजा-सजा
तीन धाड़ी माला बनेलौं
जहि‍ना आड़ि‍क धार बनै छै
तहि‍ना आड़ि‍-आड़ बनल
ठामे-ठाम साबे सजि‍-धजि‍
तीन धाड़ी पनि‍बट बनल।
अद्राक अद्रासँ आद्रि‍त भऽ भऽ
शीशोक गाछ पोनगि‍ उठल।
कखनो पानि‍-माटि‍ पीबि‍
कखनो पानि‍-माटि‍ पीबए लगल।
प्रेमी-प्रेमि‍का चालि‍ पकड़ि‍
सि‍रजन सृष्‍टि‍ करए लगल
बि‍तते बरसात भभा उठल
शीशो गाछ जगमगा उठल
आसि‍न-आसा पाबि‍-पाबि‍
धाड़ी बनि‍ धड़ि‍आए लगल।
साबे ससरि‍ आड़ा पकड़ि‍
ऊपर-नि‍च्‍चाँ पसरए लगल।
रक्षक-भक्षक संग पकड़ि‍
संगे-संग चलए लगल।
जेकरा बकरियो ने पुछै छै
आ कि‍ डरे भीड़ि‍ सटैए।
एक-दोसराक रक्षा करैत
संग मि‍लि‍ चलए लगैए।
साले भरि‍ बीतैत-बीतैत
धाड़ी शीशोक धड़ि‍या गेल।
मरल लक्ष्‍मी जीबैत देखि‍-देखि‍
हारल मन हरि‍आ गेल।
बीतते काति‍क काटि‍ साबे
अंगने-खरि‍हाने पसारलौं
आठे दि‍नक रौद पीबि‍
जुट्टी गुहि‍ मुट्ठी बनेलौं।
साले-साल जहि‍ना उठए
सड़कि‍ शीशो सड़कए लगल।
देखि‍ते दुरदि‍न दि‍न कुदि‍न
सुदि‍न दि‍न कहबए लगल।
सु-दि‍न दि‍न अबैत देखि‍
पत्नीक मन कु-दि‍न पड़लनि‍
कुदि‍न-सुदि‍न बीच घुरि‍या
दि‍न फल पबए लगलनि‍।
पबि‍ते फड़ जि‍नगीक
लहरि‍-लहरि‍ लहरए लगलनि‍।
प्रेमातुर भऽ बाढ़ि‍ पसारि‍
छाती-हृदए सेहो जुड़ेलनि‍।
जइ छाती दूध पि‍आ बाल
बोध वृक्ष सि‍रजन करै छै।
अकास उठैत वृक्ष देखि‍
तड़पैत मन कलशए लगै छै।
तपसी बनि‍ तपस्‍या केलौं
समए पाबि‍ फलो नीक पेलौं
बोध-वृक्ष रूप देखि‍-देखि‍
जि‍नगीक गुन-धाम पहुँचलौं।
शि‍शबोनी देखि‍-देखि‍ मन
उत्‍साहसँ उत्‍सुक बनल
प्रेमातुर भऽ प्रेम तहि‍ना
प्रेमसँ प्रेममय बनल।
      ))((

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