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Tuesday, April 10, 2012

अपनेपर हँसै छी :: जगदीश मण्‍डल


अपनेपर हँसै छी

ठक वि‍द्या वि‍द्यालयसँ
नीकहा डि‍ग्री कि‍नलौं।
शि‍क्षामि‍त्रक उजैहि‍यामे
हमहूँ नोकरी पेलौं।
लाखे रूपैयामे,
दशो कट्ठा जमीन गमेलौं।
गुरुदक्षि‍ना देने बि‍ना
गुरुआइक भार उठेलौं।
दि‍न-राति‍ गुरुआइ करै छी
मुँह भरल मधुरसँ।
जे नि‍कलत सएह मधुर
सुनैत रहू अस्‍थि‍रसँ।
आरो बात सुनबै छी
अपनेपर हँसै छी।

मात्रा घुसका-फुसका
शब्‍द बनेलौं ठूठ डारि‍।
अक्षर काटि‍ ईटा बनेलौं
साहूल खसा देलौं डांरि‍‍।
तीरछा-तीरछा चेन्‍ह लगा
कोने कानी लेलौं नाओं।
बाहरे-बाहर सोझ-साझ
उठि‍-बनि‍ गेलै सौंसे गाओं।
पुरने घरक ईटा जोड़ि‍-जोड़ि‍
नवका घर बनबै छी।
अपनेपर हँसै छी।
पुरनाकेँ पुराण कहि‍-कहि‍
नवका चालि‍ सि‍खबैत एलौं।
धर्म सनातन कहि‍-कहि‍
अर्थ-जाल फेकैत एलौं।
इचना पोठी छानि‍-छानि‍
डेली भरैत एलौं।
गुबदी मारि‍ बि‍हुँसै‍‍ छी
मन कनैत, हँसैत तन
कठहँसी हँसि‍ हँसै छी।
अपनेपर हँसै छी।
धन की? केकरा कहबै
धन यौ भाय?
गाए-माए छी एक्के
पूछि‍ लि‍यनु यशोदा माइ।
बि‍नु धनक धनि‍क जहि‍ना
ताम-झाम देखबैए।
देखि‍-देखि‍ आँखि‍ करुआए
लाजे आँखि‍ मुनै छी।
अपनेपर हँसै छी।

हेहरा गाछक फल खा-खा
हेहरपन्नी सि‍खैत छी।
दि‍न-राति‍ हहरि‍-हहरि‍
नि‍च्‍चाँ ससरि‍ खसए।
उनटा मुँह आगू घुमा
कल्‍याण-कल्‍याण रटैत छी।
क्षणे-क्षण पले-पल
रीत-नीति घटबैत छी।
अपनेपर हँसैत छी।
गालक सि‍‍तार बना-बना
राग-पुराणक स्‍वर साधै छी।
राग-तान मि‍ला-मि‍ला
वेद-पुराण गबै छी
अपनेपर हँसै छी।
))((

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