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Sunday, April 8, 2012

उन्नति :: जगदीश मण्‍डलक कवि‍ता


उन्नति
मेटत केना गरीबी यौ भैया
मेटत केना.....।
धन-धान्‍य नुकाएल माटि‍मे
नुकाएल छै हीरा-मोती
नि‍कालैक बुधि‍‍‍ये बि‍झाएल
केना कऽ पाएब ज्‍योति‍
कानक बि‍नु सोन होइत जहि‍ना
तहि‍ना ने माटि‍यो छै।
ने छै श्रम आ ने समचा छै
तखन केहेन फल भेटत यौ भैया,
मेटत केना.....।
मन पति‍याबए, औजार बनल छै
नहरो खुनाएल कोसीमे।
होइए की सभ देखते छि‍ऐ
आशाक आश लगत कथीमे।
खादक बदला माटि‍ भेटै छै
बोरि‍ंगक पाइप सेहो नकली छै।
पम्‍पींग सेटक कथे की
तीन बेर साले सि‍सकै छै।
अहीं कहू, केना हएत यौ भैया...
मेटत केना.....।
खेतक बि‍नु आकार देखने
फसि‍लक केना पहचान करब?
उपजल दाही जखने हेतै
अनेरे कोठीक जोगार करब।
वि‍ज्ञान बहुत आगू बढ़ल छै
मुदा, एकभग्‍गू बनल छै।
करबारीक नोर नै आँखि‍
लोकनि‍याकेँ नोर बहै छै।
घासे बीखाह उपजि‍ खेतमे
कोन मनसूबे दुहबै गैया, यौ भैया
मेटत केना.....।
ललो-चपोसँ काज नै चलतै
इमनदारीक डेग उठबए पड़तै।
से जाबे धरि‍ नै उठतै
हक्कन कनि‍ते रहबै यौ भैया,
मेटत केना.....।

))((

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