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Sunday, April 8, 2012

पुरुषार्थ :: जगदीश मण्‍डल


पुरुषार्थ

हँसि‍-हँसि‍ हम बाजि‍ रहल छी
पुरुषार्थ बघारि‍ रहल छी।
झाँपि‍-तोपि‍ अपन कि‍रदानी
मुँह खोलि‍ बाजि‍ रहल छी
पुरुषार्थ बघारि‍ रहल छी।
नोकरीमे जि‍नगी बि‍तेलौं
पराधीन भऽ जि‍नगी जीलौं।
अपन पीठ अपने थपथपा
मालि‍कक सान देखा रहल छी
पुरुषार्थ बघारि‍ रहल छी।
सहि‍-मरि‍ जे जि‍नगी जीलक
आत्‍म-चुहै कऽ सेवा केलक।
पवि‍त्र मातृभूमि‍क सेवामे
पवि‍त्रतासँ जि‍नगी लगौलक।
तकरा हम ललकारि‍ रहल छी
पुरुषार्थ बघारि‍ रहल छी।
जाधरि‍ नोकरी करैत छलौं
सर्भिसमैन कहबैत छलाैं।
जहि‍यासँ नोकरी बीतल
सर्भिससँ सेवा-नि‍वृति‍ कहेलौं।
शब्‍देक ताना-बाना बुनि‍-बुनि‍
जि‍नगीक हाथ ससारि‍ रहल छी
पुरुषार्थ बघारि‍ रहल छी।
उचि‍त-अनुचि‍तक वि‍चार केना
समरस मुँह बना बाजब
घूस-घासक चरचा केना
सकुचाइत मन, मुँह खोलि‍ बाजब।
तैयो बोली झटकि‍-झटकि‍
झटहा मारि‍ तोड़ि‍ रहल छी
पुरुषार्थ बघारि‍ रहल छी।

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