Pages

Sunday, April 8, 2012

धोब घाट :: जगदीश प्रसाद मण्‍डल


धोब घाट

धोब घाट जाबे नै जाएब
मलि‍ झाड़ि‍ चि‍क्कन नै हएब?
देह मनक काह-कूह
छोड़ि‍ ओकरा केना पएब।
थाल-कीच जहि‍ना जनमि‍
कुआर-कमल कहबैए।
तहि‍ना काह-कूह बीच
मन बुइध‍ सि‍रजैए।
धोइब घाट ओ घाट छी
पाप धुआ पुन बनैत रहैत।
अज्ञान-ज्ञान राति‍-दि‍न
रगड़ि‍ सान चढ़बैत रहैत।
बदलि‍ अन्‍हार इजोतमे
छोड़ि‍ राति‍ दि‍ने कहबैत।
जेकरे दि‍न तेकरे छी राति‍
लोक-वेद स्‍वर तानि‍ कहैत।
बारह-घंटाक बँटबारा फूसि‍
जेठक दि‍न राति‍ कहैए।
उला-पका राति‍केँ
साले-साल सुर्ज सुड़कैए।
सुख-आरामक पहर छीनि‍
हँसि‍-हँसि‍ राति‍-दि‍न झाड़ैए।
धरतीसँ सि‍र उठि‍ते अकास
सोर बनि‍ पकड़ए बात पताल।
ऊपर धरती पसरि‍ अकास
तहि‍ना धरती तर धरती सजाएल।
सात तल जहि‍ना अकास
तहि‍ना धरति‍यो धेने अछि‍।
ऊपरसँ जहि‍ना अकास
तहि‍ना धरति‍यो रखने अछि‍।
बढ़ैत वृक्ष जहि‍ना अकास
सोर बनि‍ सि‍रो ससरैए
वृक्ष ि‍सर्फ ऊपर बढ़ैए
सोर ससरि‍ दू बाट धड़ैए।
एक बाट ससरि‍ पताल
दोसर अकास बाट धड़ैए।
जहि‍ना बाँसक ऊपर-नि‍च्‍चाँ
गि‍रह-गि‍रहमे सीर नि‍कलैए।
अद्भुत खेल वि‍धातोक छन्‍हि‍
दि‍न-राति‍ रंगमंच बदलैए।
लगले ससरि‍ सि‍र
गि‍रहसँ डारि‍-डारि‍ पकड़ैए
बर्ड़ू, बरहा बनि‍-बनि‍
लटकि‍ डारि‍ धरती पकड़ैए।
फुसि‍या, पनि‍या पोलहा-पोलहा
पएर पसाड़ैए रती-रती।
आँखि‍-मि‍चौनी खेल पसारि‍
नाचि‍-नाचि‍ सि‍र पसरैए।
करौटन नाओं धड़ा-धड़ा
फूलक घर आबि‍ बसैए।
तँए कि‍ खेल खतम भेल
कुदि‍-कुदि‍ दि‍न राति‍ नचैए।
पातसँ मुड़ी पकड़ि‍
तरे-तर सेहो ससरैए।
जहि‍ना डारि‍ करौटन, लीची
खोधि‍ते खोंइचा पकड़ैए।
नीचाँ-ऊपर ससरि‍-ससरि‍
अपन-अपन बाट पबैए।

))((

No comments:

Post a Comment