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Tuesday, April 10, 2012

निमिष झा - असमर्पित उन्माद


अहाँक वएह नयन, वएह मोन आ वएह तन
हम देखि रहल छी, सुनि रहल छी आ भोगि रहल छी
समयक नाम  अन्तरालक बाद सेहो
आँखि खोलैत आ मिचैत सेहो
आ अहाँ हमर शरीरक अदृश्य सरित प्रवाहमे
सर्वाङ्ग समाहित छी, सज्जित छी।

ई अभीष्ट  रूप अहींक थिक
जकर अनुपस्थि‍तिमे हमर चित्त
शुष्क सिकतातुल्य भऽ गेल अछि
ई शीतल छाहरि अहींक थिक
जकर अभावमे
प्रत्येक निमिष हमरा लेल
नीरस आ उदास बसन्ते बनि गेल अछि ।

अहाँ पानि छी हमर पियासक
अहाँ बसन्ती छी हमर बसातक
तएँ एकटा अतृप्त  उन्माद
नाचि रहल अछि भैरव बनि
हमर मानसमे ।

हमर स्नायुक रोमरोममे
एकटा विषाक्त तृष्णा
बहि रहल अछि
आ बहि रहल अछि
हमर धमनीक कणकणमे
एकटा उन्मुक्त तृषा ।

बहुत बेर उघारि देलिऐ, फारि देलिऐ
नृशंस बनि आवेशसँ
लज्जाक पर्दा सभ
आ बन्द कऽ देलिऐ नैतिक मूल्यसँ
पाशविक उन्माद सभ।


हँ !
आइयो ओहिना स्मृतिमे लटपटाएल अछि
अहाँक गरम साँसमे
गुञ्जित हमर जीवन सङ्गीत
अहाँक आँचरमे ओझराएल हमर शर्टक बट्टम
अनार जकाँ अहाँक दाँतपर
पिछरैत हमर जीह
अहाँक ब्लाउजक हुक संग खेलाइत
हमर दसो आँगुर
आ अहाँक सुन्दर छालपर
दौगैत हमर ठोर ।

तथापि किएक नहि मिझाइत अछि
छातीक ई उन्मत्त मोमबत्ती
किएक निष्काम नहि होइत अछि
मोनक उत्तप्त‍ बोखार सभ
जेना अहाँ
दारुक प्याला होइ
आ हम चुस्की तँ लऽ रहल छी
मदहोस भऽ रहल छी
अहाँक स्वप्निल लज्जा बनत तनमे
निमिष निमिषमे।

मुदा ओह!
ई केहन विडम्बना!
नित्यशः
एक्केटा बिन्दुपर दुर्घटना होइत गेल
हमर उच्छृङ्खल वासना सभ
अहाँक दर्शन आ सिद्धान्तक शिखरसँ
नितदिन एक्के रस्ता‍ घुरि जाइत छल
अभिशप्त अहाँक विचार
हमर अभिशून्य‍ मस्तिष्ककेँ झकझोरैत छल ।

शाइत कमजोरी हमरामे छल
की गिद्ध बनि हम युद्ध नहि कऽ सकलौं अहाँक तनसँ
शाइत महानता अहाँक छल
माला बनि अहाँ समर्पित नहि भऽ सकलौं हमर गरासँ ।

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