अगो-लोढ़ा
हे गे बेटी गे, हे गे धीया गे
आइ धरि दुखक दिन कटलौं
काल्हिसँ आओत समए सुखक।
राति भरि जागि मन पाड़िहेँ
बीतल साल, मास दिन दुखक।
कोन नक्षत्र अाबि रहल छै
कनिये दे हमरो बुझा।
कोन सुख काल्हिसँ आओत
सेहो दे नीकसँ सुझा।
धनकटनीमे हाथ लगेबै
हाँसू धार कुटौने छी।
संग मिलि तोहूँ लोढ़िहेँ
लोढ़ा बीछा तोरे ने छी।
चारि साल जते जे लोढ़लौं
अगो तँ तोहूँ दैत एलँह।
भुरकुरी ढन-ढन करैए
कुटि-चुड़ि तोहीं खेलँह।
समए पाबि खेलियौ बुच्ची
सूदि दऽ पूरा करबौ।
अगो-लोढ़ा जोड़ि-जाड़ि
मुइरिक संग सूदियो देबौ।
एहेन अलछनी हमहीं हेबौ।
माए-बापसँ सूदि लेब।
महाजनीक कारोबार कऽ कऽ
महाजनीक भार देब।
नै बेटी नै बुच्ची, नूनू
मुँह दाबि एना नै बाजह।
जते गहन लगल बीच अछि
दोबरा-दोबरा मुड़ घुरेबह।
सुनि-सुनि मन तड़पैए
माए-बाप की हम्मर नै।
बेटा-बेटी भेद कतए अछि
सेवा की हम्मर नै।
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