भरदुतिया
आइये ने भरदुतिया छी माए
पिरही कखनी धुअए जाएब।
साल भरि माटिक लेढ़ाएल
चिक्कन धोय कखनी सजाएब।
बिनु सुखने लिखिया केना हेतै
बिनु लिखिये आसन केना बनतै।
भाए-बहिनक सगुनिया पावनि
बिनु िनअम-निष्टे केना चलतै?
पुरनि तँ पाड़ले अछि बेटी
कटहरक रंग छै सटल।
मलि-मलि माटि धोइ दिहक
सुखिते चमचमाए लगत।
पानो-मखानक ओरियान
अखन धरि पछुएने छी।
पावनिक ओरियान करह तूँ
अंगना घर सम्हारै छी।
बाल-बोध बूझि बनियाँ,
हमरा तँ ठकिये लेत।
पाइओ बेसी-बेसी लऽ लऽ
चीजो तँ दबके देत।
ई सभ बात सोचए कियो
भरल-पूरल पावनिमे।
राम-धाम सभ सहि
भाइक हाथ पुजैमे।
))((
No comments:
Post a Comment