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Tuesday, April 10, 2012

रघुनाथ मुखिया- दादागिरी



बेसी दौड़बे तँ
दौनीक बरद जकाँ
कराममे जोड़ि देबौ!
हाथमुँहमे जाय लागलौ?
आ भरेऽ लागलौ पेट?
जाबी बान्हि देबौ, जाबी!!
पाँखि बढ़ल जाइ छौ?
लोकतंत्र चाही तोरा?
संविधान लेबे संविधान?
आ ने लुक्कासँ झरका देबौ, लुक्कासँ!
ईह! नाचैए कोना छमछम
मुंगरीसँ घुट्ठी ससारि देबौ, घुट्ठी
नञि तँ मोन ठंडा केने रह, ठंडा
चिन्है नञि छिही हमरा?
भकसी झोंका देबौ, भकसी।
कलमुच टुकुरटुकुर तकैत रह
कानमे तूरतेल देने सूतल रह
जाधरि हम तोहर कंठ मोकि
साँस नञि निकासि दियौ। 

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