Pages

Tuesday, April 10, 2012

जीवकान्त - वनदेवी



वनवासिनी स्त्री जंगलमे
भोजन तकबा लेल बौआइत अछि
झाँखुरमे पकड़ए चाहैए बटेर
बिछैए जंगली करैल आ खम्हारु
थोड़ेक जारनिक काठ जमा करैए

क्यो चिमनी ईंट भट्ठापर
पजेबा उघैए आ बोनि कमाइए
चुल्हि जरैत छैक बहुत नियारसँ
मुदा मिझाइत छैक पट दए

हाथ धरबा लेल कम मर्द उपलब्ध छैक
शहर दिस गेल जुआन नहि घुरलैए
रिक्शा घिचबाक बोरा उतारबाक जानमारू काजमे
बहुत पसेनाकेँ थोड़ कैंचा भेटैत छैक

वनवासिनी स्त्री सेहो छोड़ने जाइए वन
शहरमे सड़कपर राति कटबा लेल
आ दिनमे हवेलीमे झाड़ू-पोछा देबा लेल...
शहर ओकरा चिबा कए सुता दैत छैक
ओकर खून चाटि कए नेहाल होइत छैक
शहरक मोटरमे
तेल जकाँ जरैत अछि वनवासीजन
शहरक आकाशमे
ओ डीजिलक धुआँ जकाँ बिलाइत अछि

बाघक प्रजाति उपटैत छैक
तँ चिन्ता घेरैत अछि जनमानसकेँ
अंडमानसँ लोहरदग्गा धरि
आ उजानक मुसहरीसँ नट्टिन सभक सिड़की धरि
उपटैत अछि वनवासी स्त्री-पुरुष
अगबे बसात रोदना करैए सुतली रातिमे
पहाड़मे गन्हाइत धार नोर बनि टघरैत अछि
बबुआन सभक करेज दिल्लीसँ चतरा धरि
पथर-कोइलाक खण्ड जकाँ सर्द अछि
(३०.०६.२००९)

No comments:

Post a Comment