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Tuesday, April 10, 2012

रघुनाथ मुखिया - कविताक शीर्षक जकाँ



एहि माटिपर
जतऽ कहियो सुग्गा पढ़ैत छल वेद बुझि पड़ल जे गार्गी कोना तैयार भेल हेतीह
विद्रोहक लेल।
भारती कोनो मसल्ला पिसलनि
धुरंधर सन्यासीक छातीपर
तकर चर्चा एखनहुँ होइत अछि
महिषीक माटिपर
एखनहुँ चर्चा होइत छैक जे
सहुआक फेरमे
सिबरानी कोना प्रेमचन्दकेँ मारि देलनि
आ भारती कोना
शंकराचार्यकेँ परास्त कऽ
मंडन मिश्रकेँ तारि देलनि
आ से एकटा अचरज देखियौ जे
भारतीक पराजित हेबाक कोन धूजा
पुरातत्वविद् फनीकांत मिश्रकेँ
कतौका संग्रहलयमे भेटि गेलै
जकरा ओ अपन बपौती आकि खतियौनी बुझि
किएक मिथिलामे फहराबऽ लगलाह?
ई सभ किछु कहबाक लेल
मंडन संततिक रुपमे
प्रचण्ड रौदमे तप्त भेल
नहि, नहि दुनुक बीचमे
सत्यक स्वरुपमे
वियोगीठाढ़ अछि
सत्यकेँ सत्य कहबा लेल
भगवती उग्रताराक खड्गपर
अपन माथ रखने।

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