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Tuesday, April 10, 2012

अलकक चान :: जगदीश मण्‍डल


अलकक चान

अबि‍ते गाम चमकए लगलै
ताकि‍ तरेगन बि‍छए लगलै।
ज्‍योति‍ मि‍ला परखि‍-परखि‍
अकास सि‍र सजबए लगलै।
रंग-रंगक तारा सजल छै
लग-पास संग सेहो हटल छै।
कोणे-काणी सजि‍-धजि‍
मोती-कंचन माला बनल छै।
धूप-छाँहक पाश पाबि‍-पाबि‍
नब-पुराणक भेद मि‍टल छै।
धाम ज्ञानक चोला पहि‍रि‍-पहि‍रि‍
शब्‍द–शब्‍दक जाल पसरल छै।
मुर्ति जखन कागज उतरि‍‍
रूप भगवान धारण करै छै।
झड़ि‍-झड़ि‍ झहड़ि‍ असल
नकल रूप धड़ए लगै छै।
जहि‍ना कार्बन काॅपी होइ छै
नकल कार्बन चढ़ए लगै छै।
तहि‍ना अरूप-सरूप संग
चुट्टी चालि‍ चलए लगै छै।
जहि‍ना मुसक चालि‍ पकड़ि‍
मुसरी सेहो घुसकए लगै छै।
जाल-महजाल पकड़ि‍-पकड़ि‍
पकड़ि‍ सुत कॉटए लगै छै।
आदि‍क दुहाइ लगा-लगा
आधि‍-व्‍याधि‍ सि‍रजए लगै छै
मकड़-जालक रूप गढ़ि‍-गढ़ि‍
अपने चालि‍ये फँसए लगै छै।
अलकक चान हाॅसू पकड़ि‍
खल-खल सतमी पार करै छै।
अट्टहास अष्‍टमी केर पबि‍ते
नब-रंग नवमी कहबै छै।
पबि‍ते नौमीक चान अकलक
पुनो दि‍स ससरए लगै छै।
पुनोक परताप पकड़ि‍-पकड़ि‍
पूर-चान कहबए लगै छै।
एक चान यमुना उतरि‍‍
महल ताज देखए लगै छै।
दोसर चान पून्‍यात्‍मा बनि‍
आत्‍म लोक बि‍चड़ए लगै छै।
डेग-डेग दर्शन पबैत,
डेगे-डेग ससरए लगै छै।
उड़ि‍ अकास धरती पकड़ि‍
चान-सूर्ज कहबए लगै छै।
प्रीत-रीति‍ पकड़ि‍-पकड़ि‍
अपन-अपन बेथा गबै छै
राग-रागि‍नि‍ राग भरि‍-भरि‍
प्रेमाश्रु धार बहबै छै।
जमुनाक जल बनि‍-बनि‍
नीर सरस्‍वती चढ़बै छै।
गाड़ा-जोड़ी करैत दुनू
गंगा बाट बनै छै।
तीनू मि‍लि‍ तिरवेणी कहबए
सूर-तान-राग भरै छै।
आलाप-परलाप भरैत-करैत
परि‍याण परि‍याग करै छै।
))((

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