वोनक आगि
गाछ-बिरीछक रग्गड़सँ
लुत्ती छिटकै छै वनमे।
सुखल पात ठहुरी पकड़ि
पसरै छै सघन वनमे।
धधड़ा धधकैसँ पहिने
करिया धुआँ पसरे छै।
लगैत आँखि अश्रु करूआइते
जीव-जन्तु पड़ाइ छै।
आगिक डर केकरा ने होइ छै
चाहे बाघ हुअए कि हाथी
मुदा,
धीरजसँ जे सहति.....।
सएह कहै छी यौ भाय साथी।
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