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Tuesday, April 10, 2012

कुसुम ठाकुर- अभिलाषा



अभिलाषा छल हमर एक,
करितौंह हम धियासँ स्नेह ।
हुनक नखरा पूरा करैमे,
रहितौंह हम तत्पर सदिखन।
सोचैत छलहुँ हम दिन राति,
की परिछब जमाय लगाएब सचार।
धीया तँ होइत छथि नैहरक श्रृंगार,
हँसैत धीया कनैत देखब हम कोना।
कोना निहारब हम सून घर,
बाट ताकब हम कोना पाबनि दिन।
सोचैत छलहुँ जे सभ सपना अछि,
ओ सभ आजु पूरा भs गेल।
घरमे आबि तँ गेलीह धीया,
बिदा नहि केलहुँ, नञि सुन्न अछि घर ।
एक मात्र कमी रहि गेल,
सचार लगायल नहिये भेल।।

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