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Saturday, April 7, 2012

सघर्ष :: जगदीश मण्‍डल

सघर्ष

पएर पंज पबि‍ते पबैत
पैजनि‍ चाह करैए।
तहि‍ना चाहि‍ चेत कुंड
धारण जि‍नगी करैए।
काया-माया संग सदए
मि‍लि‍ संग जि‍नगी पबैए
शि‍व सदृश सीमा सि‍रजि‍
राति‍-दि‍न रूप धड़ैए।
बीच कृष्‍ण घन-श्‍याम जना
महाभारत द्वापर रचैए।
संग मि‍लि‍ तहि‍ना सदए
वि‍परीत दि‍शा धड़ैए।
एक कौरब एक पाण्‍डव बनि‍
शरीर-शरीरी खेल करैए।
गीता गाबि‍ सम्‍हारि‍ शास्‍त्र
लीला जि‍नगीक रचैए।
भरल हाथ एक, एक नि‍हत्ता
उतरि‍‍ भूमि‍ वंश कुरुक्षेत्र।
हारि‍-जीत संगे सि‍रजि‍
संग मि‍लि‍ रक्‍छो करैत।
ि‍नर्जीव दूध नि‍कलि‍ सजीव
आगि‍ चढ़ि‍ आरो ि‍नर्जीव बनैए।
कहि‍ दही मटकुर सजि‍
दूध-दही कहबैए।
होइते ठाढ़ि‍ बनि‍ते दही
प्रेमी चाह करैए।
पाबि‍ प्रेमी प्रेम पकड़ि‍
पपीहा नाच करैए।
पकड़ि‍ संग संगी बना
मर्त सर्ग संग सजैए।
कहि‍-कहि‍ जीवन-मरण
साँझ-भोर डहकैए।
उदय-अस्‍त नचि‍ते-नचैत
भू-भूलोक भुलबैए।
बरैस‍ बादल गरैज‍-गरैज‍
मन मगन करबैए।
आशा-आस सटि‍ते-सटैत
आँखि‍ धार धारण करैए।
पकड़ि‍ प्रेम पड़ि‍ पएर
राहीक राह रचैए।
सीचि‍ जल शीतल बना मन
चलए संग कहैए।
बि‍नु सि‍रक राही रचि‍
भवसागर टपए कहैए।

अजस्र धार भवसार सजल छै।
नाओं एक खाली पड़ल छै।
डेग-डेगी डेगि‍ते डगै
डगमग-डगमग पएर करै छै।
डोर-डोर पकड़ि‍ डारि‍
बनि‍-बनि‍ सुत घि‍चै लगै छै।
बनल सुत राही जेना
तहि‍ना सगरो पसरल छै।
पि‍छड़ि‍-पि‍छड़ि‍ दीन-हीन
रूप सजि‍ सटै छै।
कि‍यो सटि‍ झूलैत दाॅया
बामा कि‍यो सटै छै।
कि‍यो सटै कोनो कोनचर
कि‍यो बीचे-बीच उड़ै छै।
सदएसँ होइते एलैए
होइते रहतै आगूओ दि‍न।
अन्‍हार-इजोत बीच सदए
दि‍न-राइति‍‍क‍ बीच दुर्दिन
दि‍न-दुर्दिन बनि‍ते बनैत
अकास बीच उड़ैए।
सुदि‍न-कुदि‍न सीमा पकड़ि‍
नि‍हाड़ि‍ नजरि‍ नचबैए।
डि‍म सतमी भगवती जेना
सि‍रजए सदैत ज्‍योति‍ शक्‍ति‍क।
राति‍-महाराइत‍ बैसि‍‍ बीच
दर्शन दि‍शा दैत भक्‍ति‍क।
शक्‍त-शक्‍ति‍क संग सदए
जि‍नगीक होइत संघर्ष।
सीमा बीच जखन अबैत
मचबए लगैत दुर-घर्ष।
घर्ष-दुरघर्ष बीच जखन
जि‍नगी करए रस्‍सा-कस्‍सी।
बीच समुद्र सि‍रजि‍ मथान
पकड़ए लगैत अपन-अपन रस्‍सी।
आँखि‍ मि‍चैनी खेल अजीब
कखन सुर-असुर बनैए।
असुर-सुर बनि‍ते, बनैत
कर्म-अकर्म एकबट्ट करैए।

))((

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