न्योंत
भोरे आबि लालभाय देलनि
न्योंत कोजगराक घरजाना।
नाओं कहि फुटा कऽ कहलनि
नै भेल बाबू मन-माना।
परिवार तँ परिवार होइ छै
फुटा न्योंत देब अनुचित।
बिनु विचार केने ता धरि
केना कहब एकरा उचित।
बेस पुछलह बौआ तँू
तँए तोरा कहै छिअह।
वृद्धापेंशन दरखासक तारीक
दुनू केना निमाहब आइ।
तखन कि करबै बाबू
रस्ता तँ अहीं देखाएब?
कते महत केकर छै
छी कोन बड़ भारी खाएब।
एकजना बना परिवारमे
धुरीकेँ नेने पकड़ि।
पेट भरि खाइ खातिर
डारि-पात दइए छकड़ि।
ततबे नै बौआ, आरो सुनह
बाल-बोध घरक भेलह।
तोरा छोड़ि खाएब उचित
तोरो तँ जाइले केना कहबह।
जखन अहाँकेँ न्योंत पड़त
खतियान सेहो बनबै करत।
खतियाने ने खत्ती दऽ दऽ
आड़ि-धुर बनबैत रहैत।
कहलह तँ बेस बौआ,
मुदा तोहूँ बन्हले छह।
ने उपनैन भेलह बियाह
तोहर कोन मदिये छह।
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