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Tuesday, April 10, 2012

मायानाथ झा - मातृगिरा



बनब केवल अंगरेजिया बाबू,
की राखब मातृगिराओक किछु ज्ञान?
कण्ठ खखारि हम पूछि रहल छी,
बनि मलेच्छ की बिसरब अपन पहिचान?
भऽ रहल अछि युग परिवर्त्तन,
बदलि रहल अछि आइ संसार।
उलझि अहाँ ध्रुबीकरणक जालमे,
बिसरल जाइत छी मिथिलाक व्यबवहार।
प्रगतिक डोरि पकड़ि कऽ चलब,
बात तँ नीक अवश्ये थीक।
किन्तु निरादर जननी-भाषाक,
से तँ आखिर विडम्बने थीक।
देश-विदेश की गेलहुँ अहाँ,
माइयेक बोलीकेँ बिसरलहुँ।
अपना संग-संग धीयो-पुताकेँ,
ओहिसँ विमुख कयलहुँ।
लिखबा-पढ़बाक तँ कथे कोन,
बाजब तक छोड़ि देलहुँ।
रही जे निर्मम पितृ-मातृ लेल,
निज भाषाओ लेल निष्ठुर भेलहुँ।
घरक भाषामे गप्प-सप्प‍ करब,
आइ हेठीक बात बुझाइत अछि।
चारि आखर अंगरेजी बाजी तँ,
ताहिमे बड़प्पन देखाइत अछि।
सपना भेलैक नेना-भुटकाक,
दादी आओर नानीक संग।
खिस्साे-पिहानी पाछुए रहलैक,
रंगि गेल ओ सभ टी.वी.क रंग।
माय-बापकेँ फुर्सति नहि छन्हि,
पाइयेक पाछू छथि बताह।
फूहड़ आ घृणित विनोद दूरदर्शनक,
बच्चा सभकेँ केलक घताह।
की निष्णात विद्वान मैथिलीक,
अंगरेजियोक उपासक नहि छलाह?
घरमे सभ दिन बाजि मैथिली,
की ओ आ.ए.एस. नहि भेलाह?
एहन मनीषीक नाम नहि गनाएब,
मात्र इंगित हम करैत छी।
अपन भाषाक महत्वकेँ बुझू,
सएहटा तँ हम कहैत छी।
सभ भाषा गरिमामय होइत अछि,
किंतु सर्वोपरि निज भाषा।
जँ पारंगत होयब ताहिमे,
सुदृढ़ होयत अभिलाषा।
भगवद् पूजा जेना करैत छी,
सभ दिन किछु समय बचाय।
तहिना पूजू माँ मैथिलीकेँ,
दिअ एकर पुनि मान बढ़ाय।
नहि अछि थोड़ पाठ्यसामग्री,
अछि भरल मैथिलियोक भण्डार।
भटकि गेल छी अहाँ मार्गसँ,
तैँ घटल अछि मोनक उद्गार।
केवल नाम पाबि अष्टम सूचीमे,
नहि होयत मैथिलीक उद्धार।
अछि प्रयोजन प्रबल प्रयोगक,
तखनहि सम्भव एकर विस्तार।
जँ पण्डित हैब मातृगिराक,
आनहु शीस नबाओत।
जड़ियेकेँ जँ त्यागि देब तँ,
के पुनि लाज बचाओत?

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