बुढ़बा बड़बड़ाइत रहैत छल
टण्डेली नइ कर,
एहिसँ की होतौ
देखै नइ छही समए
कमो खटो पाइ कमो
नइ तँ भुक्खे मरबेँ।
की करू
चोरी करू, डकैती करू
आकि पाकेटमारी करू
नइ, मेहनति
कर
इमानदारीसँ कमो
भुक्खे नइ मरबेँ।।
चलू अहींक बात मानि लेलौं
बड़ मोसकिलसँ भेटल काज
करऽ लगलौं मेहनति
कमाय लगलौं टका
बड्ड नीक,
मुदा कहाँ भरैत अछि
पाँचो परानीक पेट ।
गलल जाइए देह
धीया–पुता
हमरा कहैत अछि
बुढबा ..... हमरा लऽ की कएलह ?
हे, दीनानाथ
...........
हमहूँ आब बड़बड़ाइत छी ।
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