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Sunday, April 8, 2012

माटि‍क फूल :: जगदीश मण्‍डल


माटि‍क फूल

हँसि‍-फूलि‍ चढ़ए देव ऊपर
कली फलकि‍ बक्ष ऊपर
भूख-पि‍यास मि‍लि‍ आफन तोड़ए
जड़ि‍ जनमए धरतीपर।

लीला अजीव अछि‍ दुनि‍याँक
धरती-अकास छि‍ड़ि‍अबए क्षी‍र
भीर-कुभीर देखि‍-देखि‍
ससरए सदति‍ संग समीर।
एक फूल शोभा सुख पाबए
दोसर बाल-बोध सि‍र ढाबए
सृष्‍टि‍ सि‍रजि‍‍ तेसर हँसि‍ गाबए
राग-ि‍वरागक ताल मि‍लाबए।
उड़ए सुगंध समा धरतीसँ
चालि‍ चलाबए चाक कुम्‍हार
मृत कुआँ तर-ऊपर वसुधा
सानि‍-बाटि‍ लगबए अम्‍बार।

पड़ि‍ते-फुहार चढ़ि‍ते अखाढ़
महमहबए दि‍न-राति‍ सुगंध
कोण-कोण चारू कोण पसरए
नि‍साँ नचति‍ बनि‍ मदान्ध।

जे कहि‍यो रोदि‍याह रौदमे
ठोंठ सुखाबए भूखै-पि‍यास
धरि‍-धरती धी‍र हृदए
पीबि‍, पाबि‍ जि‍नगीक आस
उठि‍-बैसि‍ ओंघराइत छि‍छलए

कानि‍-कलपि‍ दऽ दंड-प्रणाम
अश्रुधार बीच डुमकी लगा
जमुनि‍या धार बीच प्रणाम
सदि‍खन प्रेमी बाट जोहि‍-जोहि
छन-छन छनछनाइत मन
दाबानल-बड़बानल लहरि‍मे
जठरानल बीच तड़पए मन।
     ))((

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