गंग स्नान
उठि भोरे छोड़ि घर,
चललौं नहाए गंग।
घर-परिवार समेट,
देह धरौल अंग।
अन्हरोखक राह हराएल,
झल-फल करए आँखि।
दुनू डेन पसारि,
लगाओल माछक पाँखि।
दिन जगल रश्मि छिड़िआएल,
देखल तखन गाम।
लटुआएल फुलवारी सुखैत,
पहुँचल एक सुरधाम।
सभ पापक जननी अहाँ मैया
जुनि बिलहू अपन सनेस।
दूध बूझि भक्तजन पीबए
सनकि पड़ाए दूरदेश।
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