बड़ मेहनतसँ खेती कएलहुँ
नीक-नीक धानक बीया लगेलहुँ
गोबर-छाउरकसँ खेत भरि हम
कादो कए हम धान लगेलहुँ
मुदा नहि जानि विधना कि लिखि देल....
की कहुँ भाय सभटा चौपट भऽ गेल।
धानक शान कहल नइ जाइ छल
हरियर कंचन धान लगै छल
तुलसी फूल-बासमतिसँ
गम-गम करैत हमर खेत भरल छल
मुदा, बाढ़िक चपेटमे सभ चल गेल
की कहुँ भाय सभटा चौपट भऽ गेल
कमला तँ मानि गेली
मुदा, कोशी बिगड़ल छल
आ भुतहीकेँ तँ बाते नहि करु
जेना सोझहे ओ उलटल छल
नहरक पानि आ वर्षा मिलि
दुनू खेलल ऐहन खेल
की कहुँ भाय सभटा चौपट भऽ गेल
सरकारक अभियान चलल
नेता सभ केलनि पहल...
एक हजार रुपैआ आ एक क्वीन्टल अनाज
देव से सुनि मनमे राहत तँ जरुर भेटल,
मुदा हे, अढ़ाइये सए रुपैआ पचीसे किलो चाउर
एतनेपर ओहो ब्रेक लागि गेल
की कहुँ भाय सभटा चौपट भऽ गेल
लिखैत ई बात गुल हसन कहैए की कहुँ भाय.....
आब हमरा किछु नहि फुरैए...
किऐक तँ हेँ
केलहा-धेलहा तँ सभटा पानिमे चल गेल
की कहुँ भाय सभटा चौपट भऽ गेल।
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