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Tuesday, April 10, 2012

मनोज कुमार मंडल - बहीन


जखन बहीन अहि घर जनम लेल,
लार-प्‍यार व स्‍नेहक बरखा केलहुँ
स्‍नेहक पुतला बना हम हृदयक मंदिरमे बैठाउल
जखन स्‍नेह यौवन छूलक
दुनियाँ कहैछ जाइछथि ई
हम पुछलहुँ की कहैत छी?
सबहक बहीन जाइ छाथि।

आँखिमे पानि व्‍यथित हृदयसँ
हम बाजल- जो बहिन तू अपन घर,
जतए खुशीसँ भरल बाग होउ
दुखक छाँह तोरा नहि भेटउ
स्‍नेहक जतए राज होउ,
कहैत-कहैत आँखिसँ गिरल
पानिक दू गोट बून्‍न
लोक सहृदए कहलक- भुलि जाओ अहाँ
हम पुछलहुँ की कहैत छी?
सबहक बहीन जाइ छथि।
महिना बीतल, बरखक बरख बीतल
हमहुँ जेना भुलि जेँका गलहुँ
नव बन्‍धनमे बान्‍द्धि हम
मायामे समाए गेलहुँ
जखन कहियो मन परल पुरने स्‍नेह उमैर परल,
स्‍नेहक मोटरी बानिह पहुँचलहुँ
लोग कहलक- भुलि जाओ अहाँ
हम पुछलहुँ की कहैत छी?
सबहक बहीन जाइ छथि।


डोली लागल बरात साजल छल,
सबहक आँखि नोरसँ भरल छल
पग भारी छल,
आगू डोली, पाछु बरात छल
हम पुछलहुँ केहन ई उत्‍सव?
सभ कहलक- भूहल जाओ अहाँ
हम.......

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