आँखि
छलकि आँखि बदलि तरंगि
कोन रचैता देखलनि मोर।
निवस्त्र कऽ कऽ केलनि सिरजन
कानि अखौंसी पोछए नोर।
नाक नचए पहरि नकौसी
चक्र टकड़ाबए चढ़ि-चढ़ि सिर
केहेन भेल ई बीच मधुरक
सटि गेल तौलाक बीचक हीर।
सदिखन दोहरी खेल रचि
रखलनि सेहन्तगर नाओं
चेहरा-मोहरा काटि-छाटि
ठाढ़ भेल बनि-बनि गाआें
सुनि कान सनसना कुकि
पकड़ि सुगंधित बाट सु-आन
गुण दऽ गुणी बना-बना
कालचक्र संग गाबए गाण।
))((
No comments:
Post a Comment